मोक्ष का तात्त्विक विश्लेषण: वैकुण्ठादि लोक और ब्रह्मज्ञान

मोक्ष (मुक्ति) का विचार भारतीय दर्शन के प्रमुख विषयों में से एक है। इसकी परिभाषा और प्रकृति पर विभिन्न मत प्रस्तुत किए गए हैं, लेकिन वैदिक परंपरा और श्रुतियों के आधार पर मोक्ष का सटीक अर्थ समझना अनिवार्य है।

कई लोग वैकुण्ठ जैसे प्रसिद्ध लोकों की प्राप्ति को मोक्ष मानते हैं। परंतु, यह धारणा वैदिक सिद्धांतों के विपरीत है। आइए इस विषय का गहन और तात्त्विक विश्लेषण करें।


वैकुण्ठादि लोकों की प्राप्ति: क्या यह मोक्ष है?

श्रुतियों का दृष्टिकोण:
श्रुतियों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वैकुण्ठ जैसे पुण्यलोक भी स्थायी नहीं हैं। “तत् यथेह कर्मचितो लोकः क्षीयते, एवमेवमुत्र पुण्यचितो लोकः क्षीयते”— इस श्रुति वाक्य से ज्ञात होता है कि जैसे इस लोक (पृथ्वी) का अंत निश्चित है, वैसे ही पुण्य के बल से प्राप्त वैकुण्ठादि लोकों का भी अंत होता है।

  • लोकों का नाश:
    आब्रह्मलोक पर्यन्त सभी लोक समयानुसार समाप्त हो जाते हैं। अतः वैकुण्ठादि लोकों को नित्य और मोक्ष का पर्याय मानना तर्कसंगत नहीं है।
  • मोक्ष के लिए मुमुक्षुओं का दृष्टिकोण:
    जो मुमुक्षु (मोक्ष की आकांक्षा रखने वाले) हैं, उनके लिए इन लोकों की प्राप्ति का कोई महत्व नहीं है। वे इसे “धैले समान” भी नहीं मानते।

मोक्ष का वास्तविक स्वरूप

श्रुति का निर्णायक वाक्य:
“तमेव विदित्वा अतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय”
इस श्रुति से स्पष्ट है कि केवल ब्रह्मज्ञान से ही मोक्ष संभव है। इसके अलावा कोई अन्य साधन मोक्ष का साक्षात कारण नहीं हो सकता।

  1. ब्रह्मज्ञान ही मोक्ष का साधन:
    • मोक्ष का एकमात्र कारण “ज्ञानादेव कैवल्यम्” है।
    • अन्य साधन, जैसे भक्ति, उपासना, या कर्म, केवल सहायक हो सकते हैं। वे साक्षात कारण नहीं हैं।
  2. कर्म और पुण्य की सीमाएँ:
    श्रुति कहती है, “नास्त्यकृतः कृतेन, न कर्मणा न प्रजया धनेन त्यागेनैके अमृतत्वमानशुः”।
    • कर्म, पुण्य, और उपासना से मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता।
    • त्याग और ज्ञान का ही सर्वोच्च महत्व है।
  3. भक्ति और अन्य मार्ग:
    भक्ति आदि मार्गों को श्रुति में केवल “सहायक साधन” कहा गया है।
    • ये मार्ग परम्परया कारण माने जाते हैं, साक्षात नहीं।
    • मोक्ष की प्राप्ति के लिए ब्रह्मज्ञान अपरिहार्य है।

भ्रांत धारणाएँ और नास्तिक दृष्टिकोण

जो लोग श्रुति को परम प्रमाण नहीं मानते, वे भ्रमित होकर विभिन्न साधनों को मोक्ष का कारण मान लेते हैं।

  • पुण्यलोकों को नित्य मानने की भूल:
    पुण्य के बल से प्राप्त होने वाले वैकुण्ठादि लोकों को नित्य मानना वैदिक दृष्टिकोण से त्रुटिपूर्ण है।
    • यह श्रुति और तर्क दोनों के विरुद्ध है।
  • कुबुद्धि और अर्थवाद का प्रभाव:
    नास्तिक प्रवृत्ति के लोग श्रुतियों के उद्घोष को अनदेखा कर, अर्थवाद के आधार पर विभिन्न साधन और साध्य की कल्पना करते हैं।

निष्कर्ष: मोक्ष का अंतिम सत्य

मोक्ष का स्वरूप केवल ब्रह्मज्ञान में निहित है। वैदिक परंपरा में इसे साक्षात और अंतिम कारण माना गया है।

  • वैकुण्ठादि लोक, जो पुण्य के बल से प्राप्त होते हैं, स्थायी नहीं हैं।
  • मुमुक्षुओं के लिए मोक्ष का अर्थ “कैवल्य” है, जो केवल ब्रह्मज्ञान से प्राप्त होता है।
  • अन्य साधन, जैसे भक्ति, उपासना, या कर्म, केवल सहायक हैं।

श्रुति का यह उद्घोष न केवल स्पष्ट है, बल्कि नास्तिक दृष्टिकोण और भ्रमित साधनों को भी अस्वीकार करता है:
“तमेव विदित्वा अतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय”।

अतः मोक्ष की प्राप्ति के लिए श्रुति की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए ब्रह्मज्ञान की साधना ही सर्वोच्च पथ है।


“ज्ञान ही मोक्ष का कारण है, और यही सनातन सत्य है।”

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