
पूर्णाभिषेक दीक्षा
पूर्वप्रदत्त मंत्रो के पुरश्चरण सम्पन्न कर चुके साधक पूर्णाभिषेक के अधिकारी हो जाते हैं। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अत्यन्त सूक्ष्म और दिव्य है। सम्पूर्ण तो नहीं तथापि कुछ भाग प्रकाशित करते हैं। अनुष्ठान में विशिष्ट शक्तिसम्पन्न बनाने हेतु गुरु एक साधक को नियुक्त करता है जो कि पूर्णाभिषिक्ताभिलाषी शिष्य के शरीर में गुरु के माध्यम से शक्तियां स्थापित करता है। गुरु मंत्र बोलता है। साधक इसके हेतु शिष्य से अनुमति लेता है, क्योंकि बिना सहमति के किसी के जीवन-तत्व को स्पर्श करना अनुचित है। अनुमति मिलने पर साधक शिष्य के अंग-अंग में देवत्व का संचार करता है।