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भद्रा काल और उसके प्रभाव

🔱 नमश्शिवाय 🔱

विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। इसके काल में किए गए शुभ मांगलिक कार्य निश्चित ही नष्ट हो जाते हैं -

“विष्टिर्नेष्टा तु मङ्गले।”

भद्रा की उत्पत्ति शिव के नेत्र से हुई है। यह अत्यंत भयानक स्वरूप वाली एवं असुर हंता है। तथापि, पृथ्वी में स्थित होने पर अपने मुख से यह मांगलिक और पौष्टिक कार्यों का भी भक्षण कर लेती है। अत: जब भद्रा पृथ्वी पर भ्रमण कर रही हो, तो इस काल में शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। शास्त्र विहित युद्धादि अनेक क्रूर कर्मों के लिए भद्रा काल का चयन किया जा सकता है।

यदि भद्रा में मांगलिक कार्य किए जाते हैं, तो वह निश्चित रूप से उस व्यक्ति के वंश का क्षय कर सकती है और मांगलिक कार्यों को नष्ट कर देती है। इसलिए भद्रा या विष्टि करण में शुभ कर्मों को मन से भी संपन्न नहीं करना चाहिए:

“तस्मात्तत्र शुभं कर्म मनसापि न कारयेत।”

वशिष्ठ जी कहते हैं कि भद्रा के मुख में कार्य करने पर कार्य का नाश, कंठ में कार्य करने पर मृत्यु, वक्षस्थल में कार्य करने पर धन की हानि, नाभि में कार्य करने पर विघ्न और कटि में कार्य करने से बुद्धि का नाश होता है।

अपनी दग्ध जिह्वा से समस्त मांगलिक क्रियाओं को भक्षण करने वाली भद्रा के पुच्छ की घड़ियां सभी शुभ कार्यों के लिए प्रशस्त मानी गई हैं। यदि भद्रा भूमंडल पर स्थित हो, तो यह अत्यंत विनाशकारी होती है। अत: इस अवधि में शुभ कार्य नहीं करने चाहिए, लेकिन भद्रा की पुच्छ को ग्रहण किया जा सकता है।

कुछ भद्राविहित कार्य, जैसे महादेव का पूजन, करने पर यह भद्रा उन कार्यों को सिद्ध करने वाली भी होती है। दुर्गा पूजा एक ऐसा ही कार्य है, जिसे भद्रा में करने से अत्यधिक फलदायी माना गया है।

भद्रा कब और कहाँ स्थित है?

भद्रा की स्थिति जानने के लिए तंत्रकुल पंचांग देखें। जब भी भद्रा होगी, उसका विस्तृत विवरण पंचांग में प्राप्त होगा। उदाहरण के लिए, यदि आज 6 मार्च को भद्रा है, तो उसका विस्तार पंचांग में देखा जा सकता है।

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