चन्द्रग्रहण निर्णय 7 सितम्बर 2025

नमश्चण्डिकायै,
नीचे हमारे द्वारा निर्मित तंत्रकुल पंचांग की चन्द्रग्रहण की गणना देहरादून के अनुसार दी गयी है। चन्द्रग्रहण 9 बजकर 57 मिनट से प्रारम्भ होगा एवं 1 बजकर 26 मिनट तक चलेगा। तो वेधकाल क्या होगा?
वेधकाल सूतक काल नहीं ---
चन्द्रग्रहण जिस प्रहर में हो उससे तीन प्रहर पूर्व एवं सूर्यग्रहण जिस प्रहर में हो उससे चार प्रहर पूर्व वेध लगता है। सूतकादि लगने का कोई शास्त्रीय प्रमाण नहीं। वेध में भी 9 घंटे 12 घंटे का मान कहना स्थूल गणना ही है, जिसमें कई घंटों का व्यतिक्रम हो सकता है। "सूर्यग्रहेग्रहणप्रहरादर्वाक्यामचतुष्टयंवेध: इति धर्मसिन्धु:"।
9 बजकर 57 मिनट पर निशीथ प्रहर होगा तो उससे पूर्व के तीन प्रहर वेध रहेगा अर्थात प्रदोष सांयकाल एवं अपराह्न में वेध रहेगा। अपराह्न दिन में 12:15 मिनट से प्रारम्भ होगा इसलिए 12:15 मिनट से वेध प्रारम्भ हो जायेगा।
वेधकाल में विधि निषेध ----
वेधकाल में भोजन का निषेध एवं हवन, श्राद्ध का निषेध मात्र प्राप्त होता है अन्य कोई विशेष निषेध प्राप्त नहीं होता। चन्द्रग्रहणे यस्मिन् यामे ग्रहणं तस्मात् पूर्वं प्रहरत्रयं न भुञ्जीत सूर्यग्रहे तु प्रहरचतुष्टयं न भुञ्जीत।
वेधकाल में हव्यकव्य ग्रहण न करने से नैवेद्यग्रहण का निषेध मानना उचित नहीं क्योंकि नैवेद्य हव्य नहीं कहलाता है अपितु हवन में डाली गयी आहुतियां ही हव्य कहलाती हैं। मनुष्यों हेतु भोजन के निषेध से देवताओं के भोजन का निषेध भी प्राप्त नहीं होता। जो नियम मनुष्यों हेतु हैं उनकी देवताओं पर सिद्धि नहीं होती। वेधकाल में देवताओं को नैवेद्य निवेदित न करने देवपूजन न करने को कोई शास्त्रीय प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है। यदि कहो कि नैवेद्य प्रसाद रूप में ग्रहण नहीं हो पायेगा अत क्योंकि मनुष्यों को भोजन का निषेध है तो घृतयुक्त नैवेद्य चढाकर उसे शुद्धि के पश्चात ग्रहण किया जा सकता है।
सूतक ---
सूतक दृश्यग्रहणस्पर्श से मोक्ष तक मान्य है। सर्वेषामेव वर्णानां सूतकं राहुदर्शने से सभी वर्णों को ग्रहणकाल में सूतक लगता है।
ग्रहणकाल में विधि निषेध ---
ग्रहणकाल में हवन, जप, श्राद्ध एवं देवार्चन किया जा सकता है। निणर्यसिन्धु, धर्मसिन्धु आदि में "ग्रहणस्पर्शकाले स्नानं मध्ये होम: सुरार्चनं श्राद्धं च मुच्ये माने दानं मुक्ते स्नानमिति क्रम:" कहा है।
देवार्चन हेतु ब्रह्मवैवर्त में वचन प्राप्त हैं। हवन जब किया जा सकता है तो देवार्चन न करना कैसे कहा जा सकता है, हवन में देवार्चन होता ही है। यदि कहो कि परम्परा से नहीं होता तो भी शास्त्र अविरुद्ध होने से देवार्चन में कोई दोष नहीं।
राहुदर्शन पर जननाशौच एवं मरणाशौच में भी हवन, दान, जप, श्राद्ध हेतु शुद्धि मान्य है, अत: जप, श्राद्ध कर सकते हैं। जब तक राहुदर्शन है तब तक शुद्ध ही रहेंगे। रजस्वला को भी दोष नहीं होता। "सूतके मृतके चैव न दोषो राहुदर्शने"।
ग्रहण में ही ग्रस्त ग्रस्तास्त हो जाने पर अगले दिन ही शुद्धबिम्ब के दर्शन में स्ननादि कर शुद्धि होती है।
ग्रहणकाल में विशेष निषेध
- ग्रहणकाल में शयन, भोजन, मलमूत्रत्याग, तेल लगाने आदि का निषेध है।
- शयन से रोग होता है।
- मूत्रत्याग से दरिद्रता आती है।
- मलत्याग से कीड़े का शरीर अगले जन्म में मिलता है।
- मैथुन से ग्रामशूकर योनि प्राप्त होती है।
- तेल लगाने से कुष्ठ होता है।
गर्भिणी स्त्री को ग्रहणदर्शन नहीं करना है।
साधना एवं सिद्धि
ग्रहणकाल में किये गये पुरश्चरण से मंत्रसिद्धि होती है। सूर्यग्रहण इसके लिए विशेष है।
सूर्यग्रहण पर मंत्रदीक्षा अत्यन्त सिद्धिदायक होती है। चन्द्रग्रहण में दीक्षा लेने से दरिद्रता आती है।
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