सम्वत्सर 2082 सिद्धार्थी आकाशीय परिषद विचार
🔱 नमश्शिवाय 🔱
भारतीय नव सम्वत्सर पाश्चात्य नववर्ष की भांति केवल एक अंक मात्र नहीं है। यह अपने आप में एक पूरा विज्ञान है।
सम्वत्सर 2082 सिद्धार्थी आकाशीय परिषद विचार
30 मार्च 2025 को, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होने वाला नवसम्वत्सर 2082 सिद्धार्थी है। सिद्धार्थी सम्वत् का स्वामी सूर्य है। जिस दिन सम्वत्सर प्रारम्भ होता है उस दिन के वारेश वर्ष का राजा होता है। जिस दिन सूर्य मेष में प्रविष्ट होता है उस दिन का वारेश मंत्री होता है। उस दृष्टि से राजा एवं मंत्री दोनों ही सूर्य है।
सिद्धार्थी ज्ञानमार्गियों के लिए अच्छा है। वैराग्य बढायेगा। इसका स्वामी सूर्य अनाजों के भाव मन्दे करेगा। चैत्र, वैशाख में कष्ट करेगा एवं ज्येष्ठ, आषाढ में प्रबल वायु चलायेगा। श्रावण में अनाजों में तेजी आ सकती है। आश्विन में समानता एवं कार्तिक में मन्दी लायेगा। मार्गशीर्ष, पौष, माघ एवं फाल्गुन में अशान्ति, धरना, प्रदर्शन, शासकीय विरोधादि झेलने पडेंगे।
वर्षा कम होगी और राजाओं का नाश होगा। वरिष्ठ शासक वा नेता का निधन होगा। पशुओं में दूध एवं वृक्षों पर फल कम होंगे। रोगों एवं चोरों से भय होगा एवं इनमें वृद्धि होगी। अग्निकांड से धनजन हानि होगी। धन धान्य बडेगा। गुड एवं रस वाले पदार्थ मंहंगे होंगे।
कर्क संक्रान्ति के दिन जो वार होता है उस वार के स्वामी को सस्येश माना जाता है।
सस्येश, चौमासी फसलों का स्वामी इस बार बुध होंगे इसलिए गेंहूं, चावल, गन्नादि की उपज पर्याप्त होगी। सूर्य के कम वर्षा के प्रभाव को बुध कुछ कम करेगा।
धान्येश, शीतकालीन फसलों का स्वामी चन्द्र होगा इससे मूंग, बाजरा, सरसों आदि अच्छी हों।
मेघेश पुन: रवि है अत: वर्षा तो कम हो तथापि चना, जौ, गन्ना, धानादि अच्छे हों। शासकों, राजनीतिज्ञों में परस्पर कलह हो। महंगाई बढे।
रसेश शुक्र होने से धार्मिक, मांगलिक कार्य खूब हों। कुछ स्थानों पर वर्षा का अभाव हो तथापि गुड, गन्नादि पर्याप्त हो। इसके प्रभाव में राजा जनता हेतु उत्तम कार्य करे।
नीरसेश, धातु एवं व्यापार का स्वामी बुध होने से शंख, रत्न, धातु, चन्दनादि मंहगें हों, चित्र विचित्र रंग वाले कपडे, हौजरी का सामान मंहगा हो।
फलेश शनि होने से वृक्षों में फल पुष्पादि कम हों। चोरों एवं रोगों का भय व्याप्त हो। मनुष्यों में रोग बढें। भारी हिमपात की सम्भावना हो।
धनेश भौम होने से तेजी मन्दी में बहुत अदला बदली हो। जौ गेहूं की खेती का कई स्थानों पर नाश हो। मार्गशीर्ष मास में विक्रय करने से अच्छा लाभ हो।
दुर्गेश शनि है जिससे कि पूरे विश्व में चल विचलता उत्पन्न होगी। युद्धादि से जनता को पलायन करना पडे। राष्ट्रों में आपसी वैर बडे। फसलों को चूहे टिड्डीयों से नुकसान हो।
यह तो सामन्य फल हुआ। इनकी कुण्डली बनाकर और सूक्ष्म विचार किया जा सकता है। यथा सूर्य के सिंह राशि के प्रवेश के समय को इष्ट मानकर दुर्गेश कुण्डली बनती है।
कृषि और व्यापार पर प्रभाव
- 🌾 सस्येश (चौमासी फसलों का स्वामी): इस वर्ष बुध होंगे, जिससे गेंहूं, चावल, गन्नादि की उपज पर्याप्त होगी।
- 🍂 धान्येश (शीतकालीन फसलों का स्वामी): चंद्र होंगे, जिससे मूंग, बाजरा, सरसों आदि की अच्छी उपज होगी।
- 🌧 मेघेश (वर्षा का स्वामी): सूर्य होंगे, जिससे वर्षा कम होगी लेकिन चना, जौ, गन्ना, धानादि की उपज बेहतर रहेगी।
- 💎 नीरसेश (धातु और व्यापार): बुध होंगे, जिससे शंख, रत्न, चन्दन आदि महंगे होंगे।
- 📉 धनेश (आर्थिक उतार-चढ़ाव): भौम होंगे, जिससे व्यापार में बड़ी हलचल होगी।
युद्ध और प्राकृतिक आपदाएँ
- ⚔ दुर्गेश (वैश्विक प्रभाव): शनि होंगे, जिससे युद्ध, अशांति, पलायन की घटनाएँ बढ़ेंगी।
- 🐀 फसलों को चूहे और टिड्डियों से नुकसान होगा।
- 🌍 भूकंप, वर्षा संकट आदि प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ेंगी।
इसके अतिरिक्त मेघ भी निकाला जाता है। मेघ 9 प्रकार के होते हैं 1. आवर्त 2. संवर्त 3. पुष्कर 4. द्रोण 5. काल 6. नील 7. वरुण 8. वायु 9. वेग । प्रत्येक मेघ का अलग अलग फल होता है।
इसके अतिरिक्त शकसम्वत् से नाग ज्ञात किये जाते हैं। नाग बारह प्रकार के होते हैं । 1. सुनुध्न 2. नन्दसारी 3. ककोटक 4. पृथुश्रव 5. वासुकी 6. तक्षक 7. कंबल 8 अश्वतर 9 हेममाली 10. नरेन्द्र 11. वज्रदंष्ट्र 12. वृष
🔮 यह तो सामान्य फल हुआ। इनकी कुण्डली बनाकर और सूक्ष्म विचार किया जा सकता है।
🔬 जगत कुण्डली: मेष संक्रांति के समय लग्न से बनने वाली कुण्डली।
📆 वर्ष कुण्डली: जिस समय अमावस्या पूर्ण हो और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा लगती है, उस समय बनने वाली कुण्डली।
जगत कुण्डली यह रहेगी। हालांकि चित्रापक्षीय, एवं सूर्यसिद्धान्तीय गणित में लग्न में कुछ भिन्नता सम्भव है।
🔱 जगत कुण्डली 🔱

मेषसंक्रान्ति के समय जो लग्न हो उसे लग्न जानकर, जगत कुण्डली बनायी जाती है। इसी के आधार पर संसार के हित अहित, शुभाशुभ का विचार किया जाता है।
जिस समय अमावस्या पूर्ण हो चैत्रशुक्लप्रतिपदा लगती है उस समय वर्षकुण्डली बनायी जाती है।
जल, तृण, वायु, अन्नादि स्तम्भ निकाले जाते हैं।
इनसब पर विशद् चर्चा आने लेखों में करेंगे।
Comments (0)
Please login to post a comment.
No comments yet. Be the first to comment!