नवरात्र में रोट बलि विधान

🌸 नवरात्रि में रोट बलि विधान 🌸
नवरात्रि के दिनों में माता की उपासना, जप-तप और हवन के साथ कुछ विशेष पारंपरिक विधियाँ भी की जाती हैं, जो लोकाचार एवं तांत्रिक परंपरा में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। इन्हीं में से एक है – रोट बलि विधान।
यह साधना रोग-निवारण, अरिष्ट शांति, शत्रु बाधा-निवारण तथा पारिवारिक कल्याण हेतु अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
रोट की तैयारी
- गेहूँ का आटा लें।
- उसमें गुड़ मिलाएँ और गूँथ लें।
- गूँथे हुए आटे से मोटे टिक्कड़ जैसे रोट बनाएं।
- प्रत्येक रोट को शुद्ध घी में अच्छी तरह सेकें।
प्रतिदिन कुल पाँच रोट तैयार करने हैं।
रोट अर्पण की क्रमवार विधि
1️⃣ महागणपति जी को रोट
संकल्प :
"मैं यह रोट बलि सर्वारिष्ट निवारण हेतु महागणपति को अर्पित करता हूँ।"
धारदार हथियार से रोट को चार टुकड़ों में काटें। काटते समय कहें :
"जैसे-जैसे यह रोट कट रहा है, वैसे-वैसे महागणपति मेरे सारे अरिष्टों को काट रहे हैं।"
एक टुकड़ा महागणपति जी के निमित्त रख दें एवं शेष अलग से रख लें। यह क्रम सभी देवताओं हेतु करना है।
2️⃣ महादेव जी को रोट
संकल्प :
"मैं यह रोट बलि महादेव को अर्पित करता हूँ, ताकि मेरे और मेरे परिवार के सभी रोग दूर हों।"
रोट को चार भाग करें और कहते जाएँ :
"जैसे-जैसे यह रोट कट रहा है, वैसे-वैसे महादेव मेरे व परिवार के सारे रोगों को काट रहे हैं।"
3️⃣ चण्डिका माता को रोट
संकल्प :
"मैं यह रोट बलि चण्डिका माता को अर्पित करता हूँ, ताकि शत्रु, ग्रहदोष और तांत्रिक बाधाएँ दूर हों।"
रोट काटते समय बोलें :
"जैसे-जैसे यह रोट कट रहा है, वैसे-वैसे चण्डिका मेरी बाधाओं और शत्रुओं को काट रही हैं।"
4️⃣ भैरव जी को रोट
संकल्प :
"मैं यह रोट बलि कालभैरव को अर्पित करता हूँ, ताकि भय, भूत-प्रेत बाधा और अकालमृत्यु का निवारण हो।"
रोट चार टुकड़ों में विभक्त करें और बोलें :
"जैसे-जैसे यह रोट कट रहा है, वैसे-वैसे भैरव मेरे भय व बाधाओं को काट रहे हैं।"
5️⃣ कुलदेवी / कुलदेवता को रोट
संकल्प :
"मैं यह रोट बलि कुलदेवी को अर्पित करता हूँ, कुलदेवी हम पर सदा प्रसन्न रहें और अपनी छत्रछाया हमारे परिवार पर बनाये रखें।"
रोट काटते समय कहें :
"जैसे-जैसे यह रोट कट रहा है, वैसे-वैसे कुलदेवी हम पर प्रसन्न हों और हमारे दुरितों का क्षय करें।"
बलि के पश्चात्
जो रोट देवता के समक्ष रखे थे वे रोट के टुकड़े बाहर दक्षिण दिशा में रख आयें।
शेष का स्वयं प्रसाद रूप में सेवन करें।
श्रद्धा, भाव और संकल्प ही इस विधान की आत्मा है।
निष्कर्ष
यह रोट बलि विधान नवरात्र में प्रतिदिन करने से रोग शांति, अरिष्ट निवारण, भय से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। भक्ति-भाव और संकल्प की शक्ति के साथ किया गया यह साधनात्मक कर्म साधक और उसके परिवार को सर्वतोमुखी कल्याण की ओर ले जाता है।
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