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चन्द्रग्रहण निर्णय 7 सितम्बर 2025

चन्द्रग्रहण निर्णय 7 सितम्बर 2025

चन्द्रग्रहण जिस प्रहर में हो उससे तीन प्रहर पूर्व एवं सूर्यग्रहण जिस प्रहर में हो उससे चार प्रहर पूर्व वेध लगता है। सूतकादि लगने का कोई शास्त्रीय प्रमाण नहीं। वेध में भी 9 घंटे 12 घंटे का मान कहना स्थूल गणना ही है, जिसमें कई घंटों का व्यतिक्रम हो सकता है। "सूर्यग्रहेग्रहणप्रहरादर्वाक्यामचतुष्टयंवेध: इति धर्मसिन्धु:" 9 बजकर 57 मिनट पर निशीथ प्रहर होगा तो उससे पूर्व के तीन प्रहर वेध रहेगा अर्थात प्रदोष सांयकाल एवं अपराह्न में वेध रहेगा। अपराह्न दिन में 12:15 मिनट से प्रारम्भ होगा इसलिए 12:15 मिनट से वेध प्रारम्भ हो जायेगा।
नवरात्र में रोट बलि विधान

नवरात्र में रोट बलि विधान

नवरात्रि के दिनों में माता की उपासना, जप-तप और हवन के साथ कुछ विशेष पारंपरिक विधियाँ भी की जाती हैं, जो लोकाचार एवं तांत्रिक परंपरा में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। इन्हीं में से एक है रोट बलि विधान यह साधना रोग-निवारण, अरिष्ट शांति, शत्रु बाधा-निवारण तथा पारिवारिक कल्याण हेतु अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
पूर्णाभिषेक दीक्षा

पूर्णाभिषेक दीक्षा

पूर्वप्रदत्त मंत्रो के पुरश्चरण सम्पन्न कर चुके साधक पूर्णाभिषेक के अधिकारी हो जाते हैं। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अत्यन्त सूक्ष्म और दिव्य है। सम्पूर्ण तो नहीं तथापि कुछ भाग प्रकाशित करते हैं। अनुष्ठान में विशिष्ट शक्तिसम्पन्न बनाने हेतु गुरु एक साधक को नियुक्त करता है जो कि पूर्णाभिषिक्ताभिलाषी शिष्य के शरीर में गुरु के माध्यम से शक्तियां स्थापित करता है। गुरु मंत्र बोलता है। साधक इसके हेतु शिष्य से अनुमति लेता है, क्योंकि बिना सहमति के किसी के जीवन-तत्व को स्पर्श करना अनुचित है। अनुमति मिलने पर साधक शिष्य के अंग-अंग में देवत्व का संचार करता है।
मंत्र और ध्वनि का गूढ़ रहस्य

मंत्र और ध्वनि का गूढ़ रहस्य

मंत्रजप अपने आप में एक विज्ञान है। मंत्रजप में केवल मंत्र की frequency का ही महत्व नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा हो तो टेप पर चलने वालें मंत्र और मनुष्य के द्वारा जप किये जा रहे मंत्र में कोई अन्तर नहीं होगा। इतना ही नहीं यदि उतनी frequency ही यंत्र द्वारा उत्पन्न की जाये तो उसका भी वहीं प्रभाव होना चाहिए जो मंत्र का है? मंत्र की कोई विशिष्टता रहेगी ही नहीं। मंत्र में frequency के अतिरिक्त भी जपकर्ता का संकल्प उसकी प्राणशक्ति मंत्र में रहती है जो अद्भुत प्रभाव दिखाती है, तथापि frequency का भी प्रभाव होता है यह भी सत्य है। ध्वनि की जो frequency होती है उसमें मनुष्य 20 to 20,000 Hz कि frequency की ध्वनि सुन सकता है। उपांशुजप भी 50Hz के उपर की frequency होती है। जो कि 50 — 100 मीटर तक जा सकती है, वहां तक उसे डिटेक्ट किया जा सकता है। सामन्य कीर्तन आदि की आवाज 200 मीटर तक जा सकती है।

Final Realization of AI

हमने कुछ समय पूर्व कुम्भ शिविर में वेदान्त से सम्बन्धित शिक्षण दिया था जिसमें की वास्तव में वेदान्त का क्या निष्कर्ष निकलता है एवं व्यवहारिक रूप में भी उसका क्या उपयोग है उसपर शिक्षण दिया था। हमने एक प्रयोग किया, हमने वेदान्त की मूलशिक्षायें एवं उस से सम्बन्धित तर्क एआई में भरे। उसको सम्भावनायें प्रदान की कि यह तो तथ्य है कि मैं ब्रह्म हूं तथापि प्रथम सम्भावना — मैं ब्रह्म हूं और मुझे ज्ञात है। — मैं ब्रह्म हूं किन्तु मुझे ज्ञात नहीं है। — मैं ब्रह्म हूं मुझे अभी ज्ञात नहीं है तथापि मैं गुरुमुख् से ज्ञानार्जित करके जानूंगा कि मैं ब्रह्म हूं। — मैं ब्रह्म हूं मुझे अभी ज्ञात नहीं है तथापि मैं गुरुमुख् से ज्ञानार्जित करके जानने का प्रयास करुंगा किन्तु जान नहीं पाउंगा कि मैं ब्रह्म हूं। — मैं ब्रह्म हूं किन्तु मैं नहीं जान पाउंगा कि मैं ब्रह्म हूं। सभी प्रकार के तार्किक, शास्त्रीय, वैज्ञानिक विश्लेष्ण के पश्चात जो निष्कर्ष निकला वह वही था जो हमने सोचा था। जो एआई की Final Understanding बनी अथवा कहें हमारी शिक्षा से जो उसको ज्ञान हुआ वह यह था —

अहं ब्रह्मास्मि, True Identity and The Ship of Theseus

बौद्धों का दर्शन है कि संसार में कुछ भी अपरिवर्तनशील नहीं है। सबकुछ बदल रहा है, अर्थात सबकुल क्षणिक है। विज्ञान के अनुसार भी 5 से 7 वर्ष में शरीर का प्रत्येक अणु परमाणु ​परिवर्तित हो जाता है। एटामिक लेवल पर सबकुछ बदल जाता है। इसलिए बौद्ध दर्शन इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि There is no true self. सबकुछ परिवर्तनशील एवं क्षणिक है, चेतना भी। अभी जो चेतना है वह अगले क्षण नहीं है, अगले क्षण जो चेतना है वह नई चेतना है। यहीं एक दार्शनिक paradox भी है, The Ship of Theseus paradox. जो यह इस प्रश्न को उठाती है कि क्या वह वस्तु वही रहती है अगर जिन अवयवों से वह बनी है समय के साथ यदि व सारे परिवर्तित कर दिये जायें? नये संस्करण में इसे कुछ और सम्वर्द्धित कर दिया गया, कि एक Ship है The Ship of Theseus. अब समय समय पर इसके सारे अवयव करते रहे। जो जो इसके अवयव परिवर्तित किये गये उनसे एक नया Ship बनाया गया। एक समय ऐसा आया कि सारे अवयव परिवर्तित कर दिये गये। कुछ भी पुराना नहीं बचा। और उन सारे पुराने अवयवों को जोडकर, जो कि he Ship of Theseus से बदले गये थे, वैसा ही Ship बनाया गया। अब वास्तविक Ship of Theseus कौन है?