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सम्वत्सर 2082 सिद्धार्थी आकाशीय परिषद विचार

भारतीय नव सम्वत्सर पाश्चात्य नववर्ष की भांति केवल एक अंक मात्र नहीं है। यह अपने आप में एक पूरा विज्ञान है। सम्वत्सर 2082 सिद्धार्थी आकाशीय परिषद विचार — 30 मार्च 2025 को, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होने वाला नवसम्वत्सर 2082 सिद्धार्थी है। सिद्धा​र्थी सम्वत् का स्वामी सूर्य है। जिस दिन सम्वत्सर प्रारम्भ होता है उस दिन के वारेश वर्ष का राजा होता है। जिस दिन सूर्य मेष में प्रविष्ट होता है उस दिन का वारेश मंत्री होता है। उस दृष्टि से राजा एवं मंत्री दोनों ही सूर्य है।

होलिका दहन 2025 - भद्रा विचार

होली आने वाली है, होलिका दहन 29 प्रविष्टे फाल्गुन मास उदयकालीन चतुर्दशी ​जहां कि 10:36 IST उपरान्त पूर्णिमा लग रही है, जो कि अगले सूर्योदय तक रहेगी, ऐसी आंग्ल दिनांक 13 मार्च 2025 पर भद्रा लग रही है। भद्रा पर पुन: वाक्युद्ध होगा। शास्त्रीय परम्पराओं का पालन करने वाले सनातनियों को भद्रा का त्याग करना उचित है। सर्पिणी कल्याणी भद्रा चन्द्र के सिंहस्थ होने से भूलोक में ही स्थित रहेगी। ऐसे में होलिका दहन कब हो? उचित है पूरी भद्रा त्याग दें, नीचे देहरादून के अनुसार पूर्ण भद्रा विचार दे रहे हैं। अपने स्थान का भद्रा विचार तंत्रकुलपञ्चाङ्ग से करें।

भद्रा काल और उसके प्रभाव

शास्त्रों में भद्रा को अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली माना गया है। भद्रा का संबंध शुभ और अशुभ कार्यों से जुड़ा हुआ है, और यह सुनिश्चित किया गया है कि भद्रा के प्रभाव में कोई मांगलिक कार्य न किया जाए। भद्रा की दग्धजिह्वा समस्त मांगलिक क्रियाओं को भक्षण कर लेती है, लेकिन इसकी पुच्छकी घड़ियां शुभ कार्यों के लिए उचित मानी जाती हैं।

यज्ञादि अग्निक्रियाओं में अग्निचक्र का ज्ञान

अग्नि चक्र के ज्ञान हेतु सूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र तक गणना करनी चाहिए, अर्थात सूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र को घटा देना चाहिए। यदि चन्द्र नक्षत्र की संख्या सूर्य से पूर्व हो तो चन्द्रनक्षत्र में 27 जोडकर उसे सूर्य नक्षत्र संख्या से घटा देना चाहिए। जितना गणना करके आये उसमें 3 का भाग दे देना चाहिए। जो लब्धि प्राप्त हो उसे इस अग्निचक्र में देखें, यथा लब्धि 7 हो तो 7: "🟡 बृहस्पति - अग्निचक्र बृहस्पति में होने से यज्ञादि कर्म अत्यन्त कल्याणप्रद"। यज्ञ करना अत्यन्त अत्यन्त कल्याणप्रद होगा।

मृत्तिका शिवलिंग में पंचसूत्र

क्या मृत्तिका शिवलिंग में योनि आदि बनानी चाहिए? जैसा कि शिवमहापुराण में स्पष्ट कहा गया है कि यथाकथञ्चिद्विधिना रम्यं लिङ्गं प्रकारयेत्‌। पञ्चसूत्रविधानं च पार्थिवे न विचारयेत्‌॥ पार्थिव में पंचसूत्रविधान नहीं करना चाहिए।

27 नक्षत्रों के वृक्ष और उनका महत्व

प्राचीन वैदिक संस्कृति ने सृष्टि, मानव और प्रकृति के गहन संबंध को गहराई से समझा और इसे जीवन का अभिन्न अंग बनाया। वैदिक शास्त्रों के अनुसार, 50 वर्ण, 27 नक्षत्र, 12 राशियां, और नवग्रह न केवल आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक संतुलन में भी इनका अप्रतिम योगदान है। वर्णौषधियों और नक्षत्रवृक्षों के इस ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में समझना और अपनाना हमारी संस्कृति और पर्यावरण को संजोने का श्रेष्ठ मार्ग हो सकता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, प्रत्येक नक्षत्र का एक विशिष्ट वृक्ष होता है। ये वृक्ष पर्यावरण, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। यहाँ 27 नक्षत्रों के वृक्ष और उनके लाभ का विवरण दिया गया है: